भारत का सेमीकंडक्टर रेवोल्यूशन: क्यों हर किसी को इसके बारे में जानना चाहिए
जब आप अपना स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं या अपनी स्मार्ट कार चलाते हैं, तो क्या आपने कभी सोचा है कि ये सब कैसे काम करता है? इन सभी डिवाइसों के दिमाग में एक छोटी सी चिप होती है, जिसे सेमीकंडक्टर कहते हैं। ये चिप्स ही इन डिवाइसों को स्मार्ट बनाते हैं। पूरी दुनिया में, सेमीकंडक्टर की सप्लाई को लेकर एक बड़ी लड़ाई चल रही है, और भारत अब इस दौड़ में शामिल हो गया है।
सेमीकंडक्टर आखिर है क्या?
सेमीकंडक्टर एक ऐसा मटेरियल है जिसकी इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी कंडक्टर (जैसे सोना) और इंसुलेटर (जैसे रबर) के बीच होती है। सिलिकॉन सबसे आम सेमीकंडक्टर मटेरियल है। इन मटेरियल्स का इस्तेमाल करके बहुत छोटे और जटिल इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाए जाते हैं, जिन्हें हम माइक्रोचिप या इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) कहते हैं। ये चिप्स ही कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टीवी, कार, और यहाँ तक कि फ्रिज में भी दिमाग का काम करते हैं।
दुनिया में चिप्स की सप्लाई कुछ ही देशों, जैसे ताइवान और दक्षिण कोरिया, के हाथ में है। COVID-19 महामारी के दौरान, जब इनकी सप्लाई चेन टूटी, तो पूरी दुनिया में चिप्स की कमी हो गई। इससे कारों से लेकर गेमिंग कंसोल तक, सब कुछ बनाना मुश्किल हो गया। इसी वजह से, हर देश अपनी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को खुद से मजबूत करना चाहता है।
क्या आप जानते हैं? एक आधुनिक स्मार्टफोन में 20 से ज़्यादा सेमीकंडक्टर चिप्स हो सकती हैं। एक कार में तो सैकड़ों चिप्स होती हैं, खासकर अगर वह एक इलेक्ट्रिक या सेल्फ-ड्राइविंग कार है।
भारत का सेमीकंडक्टर मिशन
भारत सरकार ने इस ज़रूरत को समझा है और "भारत सेमीकंडक्टर मिशन" शुरू किया है। इसका मकसद भारत को सेमीकंडक्टर डिज़ाइन, फैब्रिकेशन (चिप्स बनाने), और पैकेजिंग में आत्मनिर्भर बनाना है। सरकार ने इसके लिए बड़े-बड़े विदेशी और घरेलू निवेशकों को भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट्स लगाने के लिए करोड़ों रुपये की सब्सिडी और प्रोत्साहन देने की घोषणा की है।
हाल ही में, कई बड़ी कंपनियों ने भारत में निवेश करने की घोषणा की है। इन कंपनियों में माइक्रोन (Micron) जैसी दिग्गज कंपनियाँ शामिल हैं, जो भारत में अपनी चिप असेंबली और टेस्टिंग यूनिट्स बना रही हैं। इसके अलावा, टाटा ग्रुप जैसी भारतीय कंपनियाँ भी इस क्षेत्र में बड़ी एंट्री कर रही हैं। यह न सिर्फ़ भारत की अपनी ज़रूरतें पूरी करेगा, बल्कि हमें दुनिया के लिए एक अहम चिप सप्लायर भी बना देगा।
इसका आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा?
आप सोच रहे होंगे कि इस सब से आपको क्या फ़ायदा होगा? इसके कई सीधे फ़ायदे हैं:
- रोज़गार के अवसर: सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री बहुत तकनीकी है, लेकिन इसके बढ़ने से लाखों की संख्या में इंजीनियरिंग, डिज़ाइन, और मैन्युफैक्चरिंग में नई नौकरियाँ पैदा होंगी।
- सस्ती और बेहतर टेक्नोलॉजी: जब चिप्स भारत में ही बनेंगी, तो इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों की लागत कम हो सकती है। इससे स्मार्टफोन, लैपटॉप और दूसरे गैजेट्स आपके लिए ज़्यादा सस्ते हो सकते हैं।
- तकनीकी आत्मनिर्भरता: जब हम खुद चिप्स बनाएंगे, तो हमें दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इससे हमारी तकनीकी सुरक्षा मजबूत होगी और हम अपनी ज़रूरत के हिसाब से डिवाइस बना पाएंगे, जैसे डिफेंस के लिए खास उपकरण।
- नए इनोवेशन: चिप्स की उपलब्धता से नए भारतीय स्टार्टअप्स को भी प्रोत्साहन मिलेगा जो AI, IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स), और 5G जैसी नई तकनीकों पर काम कर रहे हैं।
चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
हालांकि, यह रास्ता आसान नहीं है। सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन एक बहुत जटिल और महंगा प्रोसेस है, जिसमें बहुत ज़्यादा पानी और बिजली की ज़रूरत होती है। हमें स्किल्ड लेबर और एक मजबूत इकोसिस्टम भी बनाना होगा।
फिर भी, भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। सरकार, उद्योग और शिक्षण संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं ताकि हम इस मुश्किल को पार कर सकें। यह सिर्फ़ एक औद्योगिक क्रांति नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय मिशन है जो भारत को 21वीं सदी की एक तकनीकी महाशक्ति बना सकता है।
निष्कर्ष: भविष्य की तैयारी
सेमीकंडक्टर भारत के लिए सिर्फ़ एक तकनीकी ट्रेंड नहीं, बल्कि एक रणनीतिक ज़रूरत है। जिस तरह से भारत इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, उससे उम्मीद की किरण दिख रही है। यह न सिर्फ़ हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा, बल्कि हमें एक मज़बूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र भी बनाएगा। हमें यह समझना होगा कि भविष्य उन देशों का है जो चिप्स को डिज़ाइन और मैन्युफैक्चर कर सकते हैं, और भारत ने इस दौड़ में एक मज़बूत कदम रख दिया है।
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